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सिविल कानून
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 47
« »12-Sep-2023
इंडिया ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य बनाम वाणिज्यिक न्यायालय और अन्य "मध्यस्थता पंचाट के निष्पादन की कार्यवाही में CPC की धारा 47 के तहत आपत्ति नहीं उठाई जा सकती है"। न्यायमूर्ति नीरज तिवारी |
स्रोतः इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंडिया ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य बनाम वाणिज्यिक न्यायालय और अन्य के मामले में माना कि मध्यस्थ पंचाट के निष्पादन की कार्यवाही में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 47 के तहत आपत्ति नहीं उठाई जा सकती है।
पृष्ठभूमि
- माध्यस्थम् अधिनियम, 1940 के तहत मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये वर्ष 1989 में एक मुकदमा दायर किया गया था जिसमें 1991 में मध्यस्थ की नियुक्ति की गई थी।
- मुकदमेबाजी की कार्यवाही लंबित होने के कारण मध्यस्थता वर्ष 2001 में ही शुरू हो सकी।
- प्रतिवादी ने माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही जारी रखने का आदेश पारित किया।
- याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के पक्ष में आंशिक रूप से निर्णय पारित किया गया था।
- प्रतिवादी ने पंचाट में संशोधन के लिये माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 33 के तहत एक आवेदन दायर किया था।
- मुकदमेबाजी के कई दौर के बाद, इस पंचाट को अंतिम रूप दिया गया।
- प्रतिवादियों ने एक निष्पादन आवेदन दायर किया था जिसमें याचिकाकर्ता ने सीपीसी की धारा 47 के तहत आपत्ति दर्ज की थी और उसे 8 अगस्त 2022 के आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया था।
- 8 अगस्त, 2022 के आदेश को चुनौती देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी।
- न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की पीठ ने मध्यस्थ पंचाट के निष्पादन के चरण में सीपीसी की धारा 47 के तहत आपत्ति की अस्वीकृति के खिलाफ एक याचिका खारिज कर दी।
- न्यायालय ने दोहराया कि मध्यस्थता पंचाट सीपीसी की धारा 2(2) के तहत एक डिक्री नहीं है, इसलिये, निष्पादन कार्यवाही में सीपीसी की धारा 47 के तहत दायर आपत्ति सुनवाई योग्य नहीं है।
- पद्मजीत सिंह पथेजा बनाम आईसीडीएस लिमिटेड (2006) मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत को दोहराया।
- इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि एक मध्यस्थ पंचाट को ने माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 36 के साथ-साथ सीपीसी के प्रावधानों को लागू करके उसी तरह निष्पादित किया जा सकता है जैसे कि यह न्यायालय का आदेश हो।
- धारा 36 में कहा गया है कि जहाँ धारा 34 के तहत मध्यस्थ पंचाट को रद्द करने के लिये आवेदन करने का समय समाप्त हो गया है, या ऐसा आवेदन किये जाने के बाद इसे अस्वीकार कर दिया गया है, तो दिया गया पंचाट सीपीसी के तहत उसी तरह लागू किया जायेगा जैसे कि न्यायालय का एक आदेश था।
विधिी प्रावधान
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 47
- यह धारा उन प्रश्नों से संबंधित है जिनका निर्धारण डिक्री निष्पादित करने वाले न्यायालय द्वारा किया जाना है। यह बताती है कि –
प्रश्न जिनका अवधारण डिक्री का निष्पादन करने वाला न्यायालय करेगा- (1) वे सभी प्रश्न, जो उस वाद के पक्षकारों के या उनके प्रतिनिधियों के बीच पैदा होते है, जिसमें डिक्री पारित की गई थी और जो डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या तुष्टि से संबंधित है, डिक्री का निष्पादन करने वाले न्यायालय द्वारा, न कि पृथक वाद द्वारा, अवधारित किये जाएंगे।
(3) जहा यह प्रश्न पैदा होता है कि कोई व्यक्ति किसी पक्षकार का प्रतिनिधि है या नहीं है वहाँ ऐसा प्रश्न उस न्यायालय द्वारा इस धारा के प्रयोजनों के लिये अवधारित किया जायेगा।
स्पष्टीकरण 1- वह वादी जिसका बाद खारिज हो चुका हो और वह प्रतिवादी जिसके विरुद्ध वाद खारिज हो चुका है इस धारा के प्रयोजनो के लिये वाद के पक्षकार है।
स्पष्टीकरण 2 –
(क) डिक्री के निष्पादन के लिये विक्रय में सम्पति का क्रेता इस धारा के प्रयोजनों के लिये उस वाद का पक्षकार समझा जायेगा जिसमें वह डिक्री पारित की गई है, और
(ख) ऐसी सम्पति के क्रेता को या उसके प्रतिनिधियों को कब्जा देने से संबंधित सभी प्रश्न इस धारा के अर्थ में डिक्री के निष्पादन, उन्मोचन या उसकी तुष्टि से सबंधित प्रश्न समझे जाएंगे।
- भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स बनाम चोपड़ा फैब्रिकेटर्स (2022) के मामले में ,उच्चतम न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता पंचाट सीपीसी में डिक्री की परिभाषा और अर्थ के तहत शामिल नहीं है और इसलिये ऐसे पंचाट के निष्पादन में कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996
- इस अधिनियम ने भारत में मध्यस्थता के संबंध में पिछले विधिों, अर्थात् माध्यस्थम् अधिनियम, 1940, माध्यस्थम् अधिनियम, 1937 और विदेशी पंचाट अधिनियम, 1961 में सुधार किया।
- यह अधिनियम अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पर UNCITRAL (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि पर संयुक्त राष्ट्र आयोग) आदर्श विधि और सुलह पर UNCITRAL (अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि पर संयुक्त राष्ट्र आयोग) नियमों से भी अधिकार प्राप्त करता है।
- घरेलू मध्यस्थता, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मध्यस्थता और विदेशी मध्यस्थता पंचाटों के प्रवर्तन से जुड़े विधिों को एकजुट और प्रबंधित करता है।
- यह सुलह से संबंधित विधि को भी परिभाषित करता है।
- यह भारत में घरेलू मध्यस्थता को नियंत्रित करता है और इसे 2015, 2019 और 2021 में संशोधित किया गया था।
- इस अधिनियम की धारा 33 पंचाट के सुधार और व्याख्या से संबंधित है। यह कहती है कि -
पंचाट का सुधार और निर्वचन, अतिरिक्त पंचाट-(1) जब तक कि पक्षकार अन्य समयाविधि के लिये सहमत न हुए हों, माध्यस्थम् पंचाट की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर,-
(क) कोई पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, माध्यस्थम् पंचाट में हुई किसी संगणना की गलती, किसी लिपिकीय या टंकण संबंधी या उसी प्रकृति की किसी अन्य गलती का सुधार करने के लिये माध्यस्थम् अधिकरण से अनुरोध कर सकेगा, और
(ख) यदि पक्षकार इसके लिये सहमत हों तो कोई पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, पंचाट की किसी विनिर्दिष्ट बात या भाग का निर्वचन करने के लिये, माध्यस्थम् अधिकरण से अनुरोध कर सकेगा।
(2) यदि माध्यस्थम् अधिकरण, उपधारा (1) के अधीन किये गए अनुरोध को न्यायसंगत समझता है तो वह, अनुरोध की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर सुधार करेगा या निर्वचन करेगा और ऐसा निर्वचन माध्यस्थम् पंचाट का भाग होगा।
(3) माध्यस्थम् अधिकरण, स्वप्रेरणा पर, उपधारा (1) के खंड (क) में निर्दिष्ट प्रकार की किसी गलती को, माध्यस्थम् पंचाट की तारीख से तीस दिन के भीतर सुधार सकेगा।
(4) जब तक कि पक्षकारों ने अन्यथा करार न किया हो, एक पक्षकार, दूसरे पक्षकार को सूचना देकर, माध्यस्थम् पंचाट की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर माध्यस्थम् कार्यवाहियों में प्रस्तुत किये गए उन दावों की बाबत जिन पर माध्यस्थम् पंचाट में लोप हो गया है, एक अतिरिक्त माध्यस्थम् पंचाट देने के लिये माध्यस्थम् अधिकरण से अनुरोध कर सकेगा।
(5) यदि माध्यस्थम् अधिकरण, उपधारा (4) के अधीन किये गए किसी अनुरोध को न्यायसंगत समझता है, तो वह ऐसे अनुरोध की प्राप्ति से साठ दिन के भीतर, अतिरिक्त माध्यस्थम् पंचाट देगा।
(6) माध्यस्थम् अधिकरण, यदि आवश्यक हो तो, उस समयावधि को बढ़ा सकेगा जिसके भीतर वह उपधारा (2) या उपधारा (5) के अधीन सुधार करेगा, निर्वचन करेगा या अतिरिक्त पंचाट देगा।
(7) धारा 31, इस धारा के अधीन किये गए माध्यस्थम् पंचाट के सुधार या निर्वचन या अतिरिक्त माध्यस्थम् पंचाट पर, लागू होगी।